लाइफस्टाइल संस्कृति

अपने जीवित रहते ही बुजूर्ग कर रहे अपना पिंडदान, सामाजिक व्यवस्था पर खडा हो रहा सवालिया निशान

Written by Vaarta Desk

जिले के कई स्थानों से मिल रही चैकाने वाली खबरें

गोरखपुर। जहंां एक तरफ चल रहे पितृपक्ष के पखवाडे में लोग अपने स्वर्गवासी हो चुके माता पिता सहित अपने पूर्वजों को श्रद्वा और सम्मान देने की परम्परा का निर्वहन करते हुए उनका श्राद्व कर रहे है वही दूसरी ओर जिले के कुछ बुजूर्ग ऐसे भी है जो अपने जीवनकाल मे ही अपना पिंडदान कर रहे हैं। बुजुर्गो के इस कार्य से जहां सनातनी परम्परा पर कुठाराघात हो रहा है वही सामाजिक सरंचना पर भी बडा निशान लग रहा है। लेकिन बुजूर्ग आखिर ऐसा करने को क्यो विवश हो रहे है जब इसकी जानकारी ली गयी तो जो बात सामने निकल कर आयी वह काफी चैकाने वाली निकली।

जिले मेें संचालित एक वृद्वाश्रम में रहने वाले एक बुजूर्ग सहित अन्य कई स्थानों पर किसी तरह जीवन यापन कर रहे कुछ बुजुर्ग अपने जीवनकाल मे ही अपना पिंडदान कर रहे है। जब उनसे इस बावत जानकारी ली गयी तो उनका कहना था कि जब उकने जीवित रहते उनके बेटे उनसे किसी तरह का वास्ता नही रखना चाहते तो उनसे इस बात की अपेक्षा कैसे रखी जा सकती है कि उनकी मृत्यू के बाद वह उनका अतिंम संस्कार या फिर पिंडदान करेगें, इसलिए हम अपना पिंडदान अपने जीवित रहते ही कर रहे है।

वही वृद्वाश्रम मे रहे रहे एक बुजुर्ग का कहना था कि हमने अपने बेटे को सभी की तरह बहुत ही लाड प्यार से पाला था, बेटा बडा हो गया, शादी हो गयी तो वह हमें अपमानित करने लगा, बात यही तक रहती तो शायद किसी तरह गंुजर बसर हो जाती लेकिन एक दिन बहू ने घर से निकल जाने का फरमान सुना दिया। हमने भी सोचा बार बार के अपमान से तो अच्छा होगा वृद्वाश्रम ही चले जाना चाहिए। अब आप ही बताओ जो बच्चे हमे अपने पास तक नही रख सकते वो हमारे मरने के बाद हमारा क्रियाकर्म कैसे करेगें।

अपने बच्चो के बडा करने और उन्हें एक बेहतर जिन्दगी देने के लिए अपने यौवनकाल को राख कर उनके लिए जिन्दगी होम करने वाले माता पिता को जब अपन वृद्वावस्था मे उन्ही से तिरस्कार झेलना पडे और अपने मेहतन की कमाई से बसाये गये आशियानें को ही छोडकर वृद्वाश्रम की शरण लेना पडे तो कही न कही इस समाजिक व्यवस्था पर एक प्रश्नचिन्ह खडा हो ही जाता है। आज आवश्यकता है हमें एक तरफ इस व्यवस्था में सुधार लाने की तो दूसरी ओैर अपने बडे बुजुर्गोे की भावनाओ को समझने और उन्हें प्रर्याप्त सम्मान और सुरक्षा देने की।

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