दृष्टिकोण

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 : भाजपा को ले डूबेगी मोदी सरकार की नाकामियां :- पंकज श्रीवास्तव

Written by Vaarta Desk

सत्यपाल मलिक सम्प्रति मेघालयके राज्यपाल हैं।वह बिहार,जम्मू-कश्मीर और गोवाके राज्यपाल रह चुके हैं। लेकिन,सार्वजनिक जीवनके लिहाजसे यह उनका बहुत छोटा परिचय है।सार्वजनिक राजनीतिमें वह पैराशूटसे नहीं उतरे।मेरठके किसान पृष्ठभूमि परिवारसे आते हैं, मेरठ विश्वविद्यालयके छात्र नेता रहे,समाजवादी आंदोलनसे जुड़े रहे,किसान नेता चौधरी चरण सिंहकी पाठशालामें राजनीतिका ककहरा सीखा,एक-एक सीढ़ी चढ़कर ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं।

1974में जब गुजरात-बिहारमें छात्र-युवा राजनीति अपने उफान पर थी,28वर्षकी उम्रमें विधायक बने,1984में राज्यसभा पहुंचे,1989में अलीगढ़से सांसद चुने गए और वीपी सिंह मंत्रिमंडलमें शामिल हुए।चौ.चरण सिंहकी पार्टी-भारतीय क्रांति दल-से राजनीति शुरू की, जनता पार्टी,कांग्रेस,लोकदल,जनता दल,समाजवादीपार्टी, भाजपा समेत कई पार्टियोंमें रहे,लेकिन दलबदलू नहीं माने गए।सार्वजनिक मुद्दों पर बिना लाग-लपेटके दो टूक शब्दोंमें खरी-खरी सुनाना जानते हैं।

सरकारके स्‍टैंडसे उलट उन्‍होंने तीन कृषि कानूनोंकी वापसीकी मांगका समर्थन किया है।उन्होंने कहा है कि किसानोंके साथ ज्यादती हो रही है।वो 10महीनेसे पड़े हैं।उन्होंने घर बार छोड़ रखा है,फसल बुवाईका समय है और वो अब भी दिल्लीमें पड़े हैं,सरकारको उनकी सुनवाई करनी चाहिए।किसान आन्दोलनके कारण मेरठ,मुजफ्फरनगर,बागपतमें बीजेपी नेता ग्रामीण क्षेत्रोंमें घुस नहीं सकते।किसानों की नहीं सुनी गई,तो सरकार दोबारा सत्तामें नहीं आ पाएगी।लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्राका इस्तीफा,उसी दिन होना चाहिए था,वह वैसे भी मंत्री होने लायक नहीं हैं।

अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वह किसानोंके साथ हैं,इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री,गृहमंत्री सबसे झगड़ा कर चुके हैं।सबको कह चुके हैं कि यह गलत हो रहा है।जिसकी सरकार होती है,उसको बहुत घमंड होता है।वो तबतक नहीं समझते,जबतक कि पूरा सत्यानाश न हो जाए।सरकारें जितनी भी होती हैं, उनका मिजाज थोड़ा आसमानमें हो जाता है।लेकिन, वक्त आता है,फिर उनको देखना भी पड़ता है,सुनना भी पड़ता है।यही सरकार का होना है।

सत्यपाल मल्लिकके वक्तव्यमें स्पष्ट नहीं है कि सरकार से उनका तात्पर्य केन्द्र सरकारसे है या राज्य सरकार से।चूंकि,कृषि कानून वापसीकी मांग केन्द्र सरकारसे हो रही है,इसलिए कुछ राजनीतिक विश्लेषकोंका मानना है कि उनका तात्पर्य केन्द्र सरकारसे है।वहीं कुछ कह रहे हैं कि अभी विधानसभाके चुनाव होनेवाले हैं, जबकि लोकसभाके आमचुनाव अभी ढाई साल दूर हैं, सो उनका तात्पर्य राज्य सरकारसे है।

पिछली बार,विधानसभा चुनावमें भाजपाने मुख्यमंत्रीके तौर पर किसीका चेहरा आगे नहीं किया था।भाजपाके सबसे वोट बटोरू नेता थे-नरेंद्र मोदी और भाजपाके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह थे।पूरे चुनाव अभियानका नेतृत्व मोदी-शाहकी जोड़ीने किया था।मोदी-शाहकी जोड़ीने डबल इंजनकी सरकारका वादा किया था।चुनाव परिणाम आनेके बाद मुख्यमंत्री पदके लिए मोदी-शाहकी पहली पसंद मनोज कुमार सिन्हा थे।

लेकिन,आरएसएसने वीटो लगा दिया और योगी आदित्यनाथके नामकी लॉटरी लग गई।मोदी-शाह-योगी की तिकड़ीने पिछले साढ़े चार सालमें खूब जुमलोंकी बौछार की,झूठकी खेती की,लेकिन सूचना क्रांतिके इस दौरमें उनके ही भाषण,अपनी ही वीडियो क्लिपिंग्स इनका लबादा हटाकर इन्हें नंगाकर दे रही है।आगामी विधानसभा चुनावमें योगी सरकारके 5सालके कार्यकाल का मूल्यांकन तो होगा ही,लेकिन 2017में वोट मांगने वाले मोदी-शाहका भी मूल्यांकन होगा।

मोदीजीकी नाकामयाबियोंकी एक लंबी सूची हैनोटबंदी, जीएसटी और कोरोना कालके कुप्रबंध पर हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालय सुशासनको लेकर व्यापक अकादमिक शोध कर रहे हैं।

8नवंबर,2016को बिना सोचे-समझे नोटबंदीकी घोषणा के एक सप्ताह के भीतर गोवा एयरपोर्टका शिलान्यास करते हुए कहा था-भाइयों बहनों,मैंने सिर्फ़ देशसे 50 दिन मांगे हैं-50 दिन.30दिसंबर तक मुझे मौक़ा दीजिए मेरे भाइयों बहनों.अगर 30दिसंबरके बाद कोई कमी रह जाए,कोई मेरी ग़लती निकल जाए,कोई मेरा ग़लत इरादा निकल जाए.आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे,मैं खड़ा होकर..देश जो सज़ा करेगा,वो सज़ा भुगतनेको तैयार हूं.

रिजर्व बैंकके नोटंबदीसे जुड़े अंतिम आंकड़ोंके अनुसार विमुद्रित मुद्रामें से 10,700करोड़ रुपये वापस बैंकमें नहीं लौटे।8नवंबर,2016को घोषित नोटबंदीसे पूर्व चलनमें रहे विमुद्रित नोटोंकी 15.42लाख करोड़ रुपयेकी राशिमें से 15.31लाख करोड़ रुपयेकी राशि वापस बैंकिंग प्रणालीमें लौट गई।इसके साथ ही, नोटबंदीके तथाकथित फायदों पर भी सवाल खड़े हो गए।

नोटबंदीसे जिन फायदों-भ्रष्टाचार पर लगाम,कालाधनका खात्मा,समानांतर अर्थव्यवस्था पर रोक,टैक्सबेस बढ़ने की उम्मीद,बैंकोंकी कमाईमें बढ़त,सस्ता कर्ज-की उम्मीद बांधी गई,वह तो पूरी हुई नहीं,उल्टे कई नुकसान हो गए।लगभग सभी अर्थशास्त्री इस बात पर एकमत हैं कि नोटबंदीके चलते अनौपचारिक क्षेत्रका भट्ठा बैठ गया,जीडीपीमें अभूतपूर्व गिरावट हुई,बैंकोंके एनपीएमें जबरदस्त उछाल आया,आम आदमीकी बचत ही नहीं सरकारी राजस्वमें भयानक गिरावट दर्ज हुई और बेरोज़गारी चरम पर पहुंच गई।

नोटबंदीकी तरह ही मात्र 4घंटेकी नोटिस पर पूरे देशमें लॉकडाउनकी घोषणाकर दी गई।पूरे देशमें अभूतपूर्व अफरातफरी मच गई।हजारों-लाखों नहीं करोड़ों लोग बाल-बच्चों,माल-असबाबको कंधा-सिर पर लादे भूखे- प्यासे पैदल ही हजारों किमी दूर अपने घर-गांव लौटने को,करोड़ों लोग नौकरी-रोजी-रोजगार गंवानेको बाध्य हुए,करोड़ों लोग कम वेतन-भत्ते,मजदूरी पर काम करने को लाचार हुए।अर्थव्यवस्था जो पिछले 2सालसे अधोगामी थी,बद से बदतर हो गई।लॉकडाउनके 3महीनोंके भीतर जितने लोग कोरोनाकी महामारीसे मरे,उससे ज्यादा प्रशासनिक कुव्यवस्थाके कारण मरे।

कोरोनाकी दूसरी लहरमें हजारों लोग इस अस्पतालसे उस अस्पताल बेडकी खोजमें भटकते मर गए,जिनको बेड मिल गया,उनमेंसे हजारों ऑक्सीजन सिलेंडरके इंतजारमें मर गए,अनगिनत लोग रेमडेसिवीर इंजेक्शन की व्यवस्थामें मर गए,हजारों लोग जरूरतके मुताबिक आईसीयू बेडकी व्यवस्था नहीं हो पानेके कारण मरे, हजारों वेंटिलेटरकी व्यवस्था नहीं होनेके कारण मरे,जो मर गए उनमेंसे हजारोंका उनकी पारिवारिक/धार्मिक परम्पराके अनुसार अंतिम संस्कार नहीं हो सका,विद्युत शवदाह गृह,श्मशान घाट,कब्रिस्तानके सामने कई-कई दिन तक लोग लाइन लगाए रहे,कभी लकड़ीकी कमी के कारण,कभी बिजलीकी कमीके कारण लाशें नदीके किनारे रेतोंमें गाड़नी पड़ी,नदियोंमें बहानी पड़ी।अप्रैल-मई-जून,2021के दो-ढाई महीनोंकी भयावहताको याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं,दिल बैठ जाता है।लेकिन,सरकार विफलताओंको स्वीकार करनेके लिए तैयार नहीं है,संवेदनहीनता-अमानवीयताकी पराकाष्ठाका प्रदर्शनकर रही है।बेशर्मीसे उसने प्रादेशिक सरकारों द्वारा सूचनाओंके आधार पर राज्यसभामें लिखित सूचना दी कि पूरे देशमें ऑक्सीजनकी कमीके कारण कोई नहीं मरा।यह शब्दोंकी बाजीगरी नहीं है, यह आंकड़ोंकी हेरा-फेरी नहीं है,यह लोकतांत्रिक सभ्यता और संस्कारके प्रति घोर लापरवाही,गैर- जिम्मेदाराना और सरकारको अन-अकाउंटेबुल मान लिए जानेका नमूना है।

तीन कृषि कानूनोंको वापस करनेकी मांगको लेकर किसान 11माह से आंदोलनरत हैं।सरकार उन्हें कभी खालिस्तानी,कभी मवाली कहकर बदनाम करती रही, सरकार सुलह-वार्ताका ढोंग करती तो है,लेकिन पहले ही शर्त रख देती थी कि तीनों कृषि कानून वापस नहीं होंगे।जब आन्दोलन ही कृषि कानूनोंको रद्द करने की मांगको लेकर है,और वार्ताके पहले ही स्पष्ट हो कि ये कानून किसी भी हालतमें रद्द होंगे ही नहीं,तो फिर वार्ताका क्या मतलब?स्वाभाविक ही,निष्कर्ष है कि समस्याका समाधान ढूंढनेमें सरकारकी कोई दिलचस्पी नहीं।देशका अन्नदाता याद रखें हुए हैं-मोदीने 2016में वादा किया था कि 2022तक किसानोंकी आय दूनी कर दी जाएगी।लेकिन,कठोर सच यह है कि मोदीके सत्तामें आनेके बाद जानबूझकर किसानों की आयसे संबंधित सर्वेक्षण कराया ही नहीं।2022 आनेको है-लेकिन सरकार अब तक किए गए प्रयासों और उसके परिणामों पर मुंह छुपाते फिर रही है।

मोदीजी भारतकी अर्थव्यवस्थाको 5ट्रिलियन इकॉनोमी बनानेका सब्जबाग दिखावें या आत्मनिर्भर भारतका दिवास्वप्न दिखावें,पिछले 7सालोंमें आर्थिक मोर्चे पर मोदी-शाहकी जोड़ी बुरी तरह फेल हुई है।हम आजाद भारतकी सबसे भयानक मंदीके दौरसे गुजर रहे हैं।2020में विदेशी मुद्रा भंडारमें 1.8अरब डालरकी गिरावट दर्ज हुई है।पूरी अर्थव्यवस्था 5%सिकुड़ गई है।12करोड़से ज्यादा लोगोंने रोजी-रोजगार गंवाए।भारतीय रिजर्व बैंकने अपने सरप्लस फंडमेंसे 1.76लाख करोड़ दिए ही थे,99122करोड़ फिर देने जा रहा है।पीवी नरसिंहराव और डॉ मनमोहन सिंहके फैसलों,निर्णयोंके कारण बड़ी मुश्किलसे 30करोड़ लोग गरीबीसे निजात पाए थे।और मोदी-शाहकी नीतियोंके कारण वापस गरीबीके जंजालमें जा फंसे हैं।अभी कोरोना कालमें 135करोड़ आबादीमें से 80करोड़ यानि कि 60%से ज्यादा गरीब लोगोंको मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है,यह तथ्य भयावह गरीबीकी दास्तान बयान कर रहा है।2020-21में सकल घरेलू उत्पाद विश्वमें सबसे कम है।बेरोज़गारी दर पिछले 45वर्षके उच्चतम स्तर 6.1% पर है।कोरोना जैसी महामारीसे निबटते हुए भी स्वास्थ प्रक्षेत्रमें राष्ट्रीय निवेश सकल घरेलू उत्पादका महज 3.5%है।असमानता घटानेके लिए गंभीर और प्रभावशाली प्रयास करनेवाले 152देशोंकी सूचीमें हम 132वें पायदान पर हैं।भुखमरीकी समस्यासे जूझ रहे 116देशोंकी सूचीमें भारत 101वें नंबर पर है,इसमें पाकिस्तान, नेपाल,बांग्लादेश,बर्मा,श्रीलंका जैसे देश हमसे आगे हैं।इस साल ब्रिक्स देशोंमें सबसे खराब प्रदर्शन करनेवाली अर्थव्यवस्था होनेके कारण वैश्विक प्रतिस्पर्धिता सूचकांकमें पिछले सालकी तुलनामें 10 स्थान फिसलकर 68वें स्थान पर हैं।विश्वखुशी सूचकांक में हम 139वें स्थान पर हैं।मानव पूंजी सूचकांकमें हम 78वें स्थान पर हैं।असमानता कम करनेको प्रतिबद्ध 158देशोंकी सूचीमें हम 129वें स्थान पर हैं।युवा विकासके क्षेत्रमें सिंगापुर पहले नंबर पर और हम 122वें नंबर पर हैं।

देशमें आर्थिक असमानताका आलम यह है कि 5साल पहले 101अरबपतियोंकी संपति देशके सकल घरेलू उत्पादके 10%के बराबर हुआ करती थी,अब इन्हीं अरबपतियोंकी संपत्ति सकल घरेलू उत्पादके 15%से ज्यादा है।देशकी आधी सम्पदा पर सिर्फ 9परिवारोंका कब्जा है।देशकी 1%धनाढ्य लोगोंने 73%सम्पदा पर कब्जा कर रखा है और 60%गरीब लोगोंके हाथमें देश की 5%सम्पदा भी नहीं है।अरबपतियोंने कोरोनाके महाआपदामें भी अवसर ढूंढ़ लिया है और उनकी सम्पत्तिमें 35%की वृद्धि दर्ज की गई है।

दशकोंसे आरएसएस और भाजपाने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति और श्रीराममंदिर निर्माणका मुद्दा हड़प रखा है। सुप्रीम कोर्टके निर्देश पर भारत सरकारने जो मंदिर निर्माण ट्रस्टका गठन किया,उस पर भूमि-क्रयके क्रममें घोटालोंके जो गंभीर आरोप लगे और उस पर दिल्ली की मोदी सरकार और यूपीकी योगी सरकारने जिस प्रकार चुप्पी साध रखी है,उसने भाजपा के चाल चरित्र और चेहरा से हर नकाब उतार फेंका है।

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