दृष्टिकोण

प्रशांत किशोर: ममता बनर्जी के बहाने सत्ताशीर्ष तक पहुंचने की जद्दोजहद

Written by Vaarta Desk

1977की वोट क्रान्तिके दौरमें आमचुनाव 16-18- 20मार्चको हुए थे।वोटोंकी गिनती 20मार्च,1977को शुरू हुई थी और गए रात यह खबर आ गई थी कि इंदिराजी अपनी रायबरेली सीट हार गईं हैं।प.बंगाल, अविभाजित बिहार, अविभाजित उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, अविभाजित मध्यप्रदेश, उड़ीसा राज्योंमें कांग्रेसको एक भी सीट नहीं मिली थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अपने परम मित्र डॉ राममनोहर लोहिया के गैर-कांग्रेसवाद के सपने को साकार कर दिया था। पूरी दुनिया में इसे वोट क्रांति की संज्ञा दी गई। प्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार, कथाकार, फिल्मकार, पटकथालेखक, संवाद लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने एक किताब लिखी-The 20thMarch,77।

……तो,उसी 20मार्च,1977को सासाराम(बिहार)के निकट कोनार ग्रामवासी डॉ श्रीकांत पांडेयके पुत्र प्रशांत किशोरका जन्म हुआ था।आरंभमें,इन्होंने संयुक्तराष्ट्रके लिए लोकस्वास्थ्यके क्षेत्रमें कुछ शोधपरक कार्य किए।2011में गुजरातमें कुपोषण की समस्या पर इनके आलेख पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की निगाह पड़ी और उन्होंने प्रशांत किशोर को बुलाकर कुछ जिम्मेदारी सौंपी। 2012में नरेन्द्र मोदी को गुजरात विधानसभा का तीसरा चुनाव लड़ना था। प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम करने का अवसर मिला। मोदी उसके बाद 2014में प्रधानमंत्री बनने के अभियान में जुट गए और एक चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर की महत्ता बढ़ गई। प्रशांत किशोर को मोदी के लिए अभिनव विज्ञापन अभियान चलाने का श्रेय दिया गया-चाय पर चर्चा, 3डी रैली, सोशल मीडिया अभियान। 2014में मोदी प्रधानमंत्री बन गए। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के ढेर सारे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, साम्प्रदायिक कारण थे। उनमेंसे एक कारण मीडिया मैनेजमेंट और प्रभावशाली चुनावी रणनीति भी थी।अपने प्रभावशाली मीडिया मैनेजमेंटसे प्रशांत किशोरने खुदको सर्वश्रेष्ठ चुनावी रणनीतिकारके तौर पर प्रस्तुत किया।
भारतीय राजनीतिमें एक ऐसा दौर शुरू हो गया, जिसमें अथाह पूंजीकी जरूरत थी,मीडिया मैनेजमेंट था,छद्म राष्ट्रवाद था।त्याग,तपस्या,सार्वजनिक सेवा, सदाचार,वैचारिक सुस्पष्टता,वैचारिक प्रतिबद्धता, ईमानदारी,संघर्षशील जिजीविषा जैसी बातें सार्वजनिक जीवनसे विलोपित होते दिखीं।

प्रशांत किशोर मोदीजीसे विचार-विमर्श करते रहे होंगे कि विभिन्न क्षेत्रोंके विशेषज्ञोंको भारत सरकारमें सीधे उच्च पदों पर सेवा करनेका अवसर प्रदान किया जाए।मोदीजीने सहमति जताई होगी,क्योंकि बादमें ऐसा हुआ भी।लेकिन,प्रशांत किशोर ज्यादा ही जल्दबाजीमें थे।कहा जाता है कि अमित शाहसे मिलकर प्रशांत किशोरने भारत सरकारमें सीधे उच्च पद पर अपनी नियुक्तिकी मांग की,लेकिन अमित शाहने मनोनुकूल रिस्पांस नहीं दिया और यहीं से प्रशांत किशोरकी मोदी-शाहसे अदावत शुरू हो गई।


प्रशांत किशोरने उसके बाद बिहारके मुख्यमंत्री नीतीश कुमारसे अपनी आत्मीयता बढ़ाई।2015के बिहार विधानसभा चुनावके लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमारने गठबंधन किया।मोदीजी के तमाम चुनाव प्रचार के बावजूद भाजपा लगभग एक चौथाई सीटों पर सिमट गई।प्रशांत किशोरकी महत्वाकांक्षाकी पूर्ति हेतु नीतीश कुमारने उनको बिहार विकास मिशन का प्रमुख बना दिया।आजतक,एक आम बुद्धिजीवीके समझसे परे है कि बिहार विकास मिशन से वेतन एवं भत्ता के रूप में प्रशांत किशोर ने कितनी राशि पाई और उसके एवजमें कितना काम किया।


बिहार विकास मिशनके पद पर रहते हुए प्रशांत किशोर अपनी कंपनी आईपैक के माध्यम से कांग्रेस पार्टीका चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा पंजाब और उत्तरप्रदेशमें संभाला।2017में पंजाबमें कांग्रेस पार्टी जीती और उत्तरप्रदेशमें धूल-धूसरित हो गई।अपने बेहतर मीडिया मैनेजमेंटके भरोसे प्रशांत किशोरने पंजाबमें कांग्रेसकी जीतका श्रेय खूब लूटा।यही नहीं,वह पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंहके सलाहकारके रूपमें अपनी नियुक्ति भी करवा ली।

उसके बाद,उन्होंने दक्षिणके राज्य आन्ध्रप्रदेश का रूख किया।मई,2017में वह आंध्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डीके राजनीतिक सलाहकार नियुक्त हुए।उनकी कंपनी आईपैकने वाईएसआर कांग्रेस पार्टीके लिए समराला संवरवरम,अन्ना पिलुपु और प्रजा संकल्प यात्रा जैसे चुनावी अभियानोंकी रूपरेखा तैयार की और क्रियान्वित किया।वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 175सीटोंमें से 151सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता अर्जित की।

विभिन्न चुनाव अभियानोंमें रणनीतिकारके तौर पर सफलता अर्जित करनेके बाद प्रशांत किशोरके मन में राजनैतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी और वह एक बार फिर नीतीश कुमारके शरणागत हुए।सितंबर,2018में वह जदयूमें शामिल हुए।दरियादिली दिखाते हुए नीतीश कुमार ने उनको पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया।

जदयूके राष्ट्रीय उपाध्यक्षकी हैसियत से मुजफ्फरपुर में एक युवा सम्मेलनमें प्रशांत किशोरने अपना बड़बोलापन दिखाते हुए युवकोंको सक्रिय राजनीतिमें आने के लिए अभिप्रेरित किया।वह यहां तक कह गए कि जब मैं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकता हूं तो मुखिया,सरपंच,प्रमुख, नगरपालिका/नगरपरिषद/जिला परिषद सदस्य आदि तो बनवा ही सकता हूं। प्रशांत किशोर का यह बड़बोलापन उनकी ही पार्टीके लोगोंको नहीं पचा और वह बदला लेनेका अवसर ढूंढ़ने लगे।नागरिकता संशोधन कानूनके मुद्दे पर प्रशांत किशोरकी व्यक्तिगत राय पार्टी रायसे अलग रही।इन असहमतियोंके आधार पर 29जनवरी,2020को उनको जदयू से निष्कासित किया गया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव,2020में प्रशांत किशोरने आम आदमी पार्टी के सफल चुनावी रणनीतिकारके तौर पर काम किया।
जदयू से अपने निष्कासनके बाद प्रशांत किशोरने ‘बात बिहार की’अभियान शुरू किया और ऐसी भंगिमा बनाई,गोया वह एक नई पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव,2020में उतरेंगे।लेकिन,शीघ्र ही उनको जमीनी हकीकत समझमें आ गई और वह प.बंगाल और तमिलनाडु खिसक लिए।
विधानसभा चुनाव,2021में उन्होंने पं.बंगालमें ममता बनर्जी और तमिलनाडुमें डीएमके पार्टी के लिए सफल चुनावी रणनीतिकारके तौर पर काम किया।

प.बंगाल विधानसभा चुनाव,2021को मोदी-शाहने मोदी बनाम ममता बना दिया था,जिसमें ममताने मोदी-शाह को जबरदस्त पटखनी दी।स्वाभाविक ही,ममता बनर्जी में मोदीके समानांतर प्रधानमंत्री बननेकी महत्वाकांक्षा जग गई है।ममता बनर्जीकी यह महत्वाकांक्षा पुरानी है।प्रारंभिक दौरमें ही उन्होंने पार्टीका नाम अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस रखा है।प्रत्यक्षतः तो,ममता बनर्जीकी महत्वाकांक्षाकी पूर्तिके लिए प्रशांत किशोरने अखिल भारतीय पहल की है।निश्चित ही,प.बंगाल विधानसभा चुनाव,2021के बाद ममता बनर्जी मोदी के समानांतर व्यक्तित्वके रूपमें उभरी हैं।लेकिन, समसामयिक राजनीतिकी क्रूर सच्चाई यह है कि 2024के आगामी आमचुनावके संदर्भमें बात की जाए, तो आज भी 200-225लोकसभा सीटें ऐसी हैं,जहां भाजपा की सीधी टक्कर सिर्फ कांग्रेससे है।इसलिए,हर विपक्षी नेता यह भली-भांति समझ रहा है कि कांग्रेस विहीन विपक्षी मोर्चा मोदीको सफल टक्कर नहीं दे पाएगा। इसलिए,अपने दिल्ली प्रवास के दौरान ममता बनर्जी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से सीधी गुफ्तगू कर गईं हैं।

प्रशांत किशोर गोवाके एक पूर्व मुख्यमंत्रीको तृणमूल कांग्रेस में ले आए हैं।पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंहके तृणमूल कांग्रेसमें शामिल होने की संभावना बढ़ गई है।चर्चा यह भी है कि भाजपा से असंतुष्ट चल रहे सुब्रह्मण्यम स्वामी, मेनका गांधी, वरूण गांधी और गुजरात के शंकर सिंह बाघेला भी तृणमूल कांग्रेसमें शामिल हो सकते हैं।इन सारी कवायदों से तृणमूल कांग्रेसको अखिल भारतीय स्वरूप देने की कोशिश की जा रही है।

दूसरी तरफ,कन्हैया कुमार,जिग्नेश मेवाणीके कांग्रेसमें शामिल होनेसे कांग्रेस की वामपंथी छवि सुदृढ़ हुई है। लखीमपुर-खीरी कांडमें राजनैतिक पहल और बनारसमें बड़ी रैली करके प्रियंका गांधीने उत्तरप्रदेशमें मृतप्राय कांग्रेस में प्राण फूंकने की सफल कोशिश की है।

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावमें किसान आन्दोलन एक बड़े मुद्दाके रूपमें उभरा है।किसान आन्दोलनका नेतृत्व कर रहे लोगोंको मालूम है कि भाजपा और मोदी-शाह उनकी मांगे-तीनों कृषि कानूनोंको निरस्त करना-मानने से रहे।इसके लिए उत्तरप्रदेश और केन्द्रसे भाजपाकी बिदाई जरूरी है।केन्द्रमें एक ऐसी सरकारकी जरूरत है,जो उनकी मांगोंके प्रति संवेदनशील हो।अगर सपा और कांग्रेसका गठबंधन नहीं होता है,और किसी एक को चुनना हो,तो उन्हें समाजवादी पार्टीकी तुलनामें कांग्रेसको चुनना श्रेयस्कर दिखता है।क्योंकि,केन्द्रमें भाजपाको कांग्रेस ही सत्ताच्युत कर सकती है,सपा नहीं।वैसे,किसान नेताओंका अंदरूनी दबाव है कि उप्र विधानसभा चुनाव,2022 सपा और कांग्रेस मिलजुलकर आपसी गठबन्धनमें लड़ें और तमाम गैर-भाजपा दलों को अपने साथ रखें।

किसान नेताओंकी इसी समझके कारण लखीमपुर- खीरी कांडके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा एक जननायिका के रूपमें उभरी हैं।लखीमपुर-खीरी कांड ही नहीं,पूरे किसान आन्दोलनको भाजपा हिन्दू बनाम सिक्ख स्थापित करनेकी कोशिशमें पूरी तरह विफल रही है।

उत्तरप्रदेशमें योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ब्राह्मण विरोधी छवि बनाई है।और हर विपक्षी पार्टी ब्राह्मण वोटोंको अपने पक्षमें ध्रुवीकृत करनेकी कोशिशमें जुटी हैं।प्रत्यक्षतः,प्रशांत किशोर राजनीतिके गलियारोंमें ममता बनर्जीको ब्राह्मण चेहराके रूपमें प्रस्तुत करनेकी कवायदमें जुटे हैं।यह व्याख्या भी सामने आई है कि नेहरू-गांधी परिवार किसी खास जाति,वर्गका प्रतिनिधित्व नहीं करता, इसीलिए किसी भी वर्ग का चेहरा कांग्रेसके पक्षमें ध्रुवीकृत नहीं हो पाता।अगर मानेका गांधी,वरूण गांधी और भाजपाका असंतुष्ट गुट ममता बनर्जीके चेहरे पर ब्राह्मण वोटोंको ध्रुवीकृत करते हैं, राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में प्रशांत किशोर भी अपना चेहरा आगे कर सकते हैं।
ममता बनर्जी को आगे कर प्रशांत किशोर अपनी कितनी महत्वाकांक्षा पूरी कर पाते हैं,यह देखना खासा दिलचस्प होगा।

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