दृष्टिकोण

भारत की न्यायपालिका, C.B.CI.D.कोर्ट के रहते निर्भियाएं, बिलकीसे क्यों डरी, सहमी :- शाइस्ता अम्बर

Written by Vaarta Desk

सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया के विरूद्ध हुई बलात्कारियों हत्यारों की रिहाई

गुजरात सरकार द्वारा बनाए गए “2014 “सज़ा माफ़ी” की क़ानूनी, प्रक्रिया,के विरुद्ध, हुआ है। धर्मनिरपेक्ष, न्याय प्रीय,संवैधानि संस्थाओं,C.B.C.I.D कोर्ट,एव न्यायालय की मूल प्रक्रिया के भी विरुद्ध है।

बलात्कार हिंसा आतंकवाद की शिकार पीड़ित महिलाएं बेटियां, “ज़िन्दा लाश बन जाती हैं”वो सदैव “मनोवैज्ञानिक तरीक़े से हर क्षण डरी सहमी रहती हैं” ।
इस दंश से पीड़िता के परिवार भी शर्मसार,और हीन भावना के शिकार रहते हैं, साथ ही,अधिकांश बार पुलिस ,विपक्ष के वकीलों की अमर्यादित भाषा,लम्बी तारीखों ,मे न्याय की प्रतीक्ष मे अनेकों कष्ट झेलने पड़ते है।

और जब संवैधानिक न्याय प्रक्रिया से दोषियों को सख़्त सज़ा का आदेश “फांसी या दोषियों को उम्रकैद की सज़ा से न्याय व्यवस्था पर भरोसा बढ़ जाता है। पीड़ितों के निर्जीव हुए जीवन ,अंतर आत्मा पुनः जीवन जीने का साहस जुटाते हैं।

पिछले दिनों भारतीय नागरिक, जब 75/वां, राष्ट्रीय पर्व,स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, हमारे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण, टी,वी चैनलों, समाचारपत्रों मे भारत वासी सुन रहे थे।

ख़ासकर भारत की महिलाओं के हित में सम्मान स्वाभिमान, सुरक्षा अधिकार, लाभकारी योजनाओं को पहुंचने वाले , आशाओं विश्वास विकास की की लाभकारी योजनाएं सुन रही थीं,वो सभी महिलाएं “तलाकशुदा हो या निर्भियाए ,बिलकीस” उन योजनाओं के लिए ,ख़ुश रहने के सपने बुन रही थी , योजनाओं के लाभ के लिए रास्ते तलाश रही थी । कि चन्द घन्टों बाद ही ,टी,वी चैनलों के माध्यम से, उनको सूचना मिलती है ,
“स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर ऐसे “कुछ “उम्र कैदियों” को “सज़ा माफ़ी “हो गई है जो “बलात्कार हत्या” के दोषी थे। “हम ,आप सभी ये सत्य जानते हैं। “बलात्कारियों हत्यारों, हिंसा आतंकवाद करने वालों का ना कोई जाती ,ना धर्म होता है वो केवल हैवान जाती के होते हैं”।

बलात्कारियों हत्यारों को जेल से रिहाई, संविधान, सर्वोच्च न्यायालय भारत, की न्यायप्रीय दृष्टि के विरूद्ध, ” सज़ा माफ़ी” की क़ानूनी, प्रक्रिया , 2014/गुजरात सरकार द्वारा बने “सज़ा माफ़”की क़नूनी प्रक्रिया के नियमों के भी विरुद्ध है । धर्मनिरपेक्ष, न्याय प्रीय,संवैधानिक संस्थाओं,C.B.C.I.D , न्यायालय की मूल प्रक्रिया के भी विरुद्ध, है।
महिलाओं का पूरा जीवन “ज़िन्दा लाश बन जाता है। पीड़ित महिलाओं के लिए, एवं,उनके परिवार के लिए ऐसी घटनाएं, आतंकवाद “जैसी ही है”।

“हम भारतीय समाज सेवी महिलाएं ,अॉल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड मांग करता है”।

“इन पीड़ित डरी सहमी , ” निर्भियाओं,बिलक़ीसों” के साथ ऐसे ,”बलात्कारियों हत्यारों हैवानो को हिसा आतंकवादियों को उम्रकैद हो”।

यदि ऐसा होने लगा ,तो पूरे भारत की जेलों मे “बलात्कारियों हत्यारों हिंसा फैलाने वाले दोषियों को जेल से बाहर आ गए, तो कल्पना करे देश समाज की न्याय व्यवस्था की की क्या परिणाम निकलेंगे। कोई शरीफ़ सभ्य समाज का परिवार मां बहन बेटियां, महिलाए “निर्भिया और बीलकीस” के शब्द से सहमी रहें गी।

समाज मे ,और भारत का संविधान, न्यायालय, क़ानून व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। हमें विश्वास है,
सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, न्याय व्यवस्था, में बनी संवैधानिक संसथाएं, राष्ट्र सुरक्षा में , देश हित, भारतवासियों के हित मे ऐसा कदापि नहीं होने देंगी।

हम याद दिलाना चाहते हैं, आख़िर भारत के संविधान और न्यायालय ने “भारत की बेटी नर्भिया के बलात्कारियों हत्यारों को “सज़ा माफी”नहीं दी , उनको “सज़ा ए मौत हुई ”

हम भारतीय समाज सेवी महिलाएं ,अॉल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड मांग करता है कि , इन पीड़ित डरी सहमी , ” निर्भियाओं,बिलक़ीसों” के साथ ऐसे ,”बलात्कारियों हत्यारों हैवानो को हिंसा करने वालों आतंकवादियों को उम्रकैद हो।

शाइस्ता अम्बर                                             समाज सेवी, अध्यक्ष                                      अॉल इन्डिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड

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