दूरदर्शन पर कार्टून नेटवर्क, पोगो आदि पर उल फिजूल आकृतियों (एलियन, दुष्ट, दैत्य, पशु, बिगड़ैल, बेढंगे, मशीनी मानव) वाले अजीब चेहरे वाले लोग अजीबोगरीब, फिजूल बातें, हरकतें करते हैं। सैंकड़ों सीरियल में हर पात्र आक्रमण करता है, चीखता है, छल करता है। जिससे हर बच्चे का टाइम खराब होता है। हजारों विदेशी मूवी का हिंदी में फूहड़ अनुवाद होता है। अनुपयोगी करैक्टर, चॅनेल, पात्र आदि वाले चैनल समय की बर्बादी है।
दर्जनों चैनल के माध्यम से बच्चो की मानसिक स्थिति को अव्यवहारिक बनाने के साथ उनके भविष्य को भी प्रभवित करने वाले ऐसे कार्यक्रमों की अनुपयोगिता के साथ बच्चो के लिए किस तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण टेलीविज़न पर होना चाहिए इसका सुझाव देते हुए जीवन कुमार मित्तल कहते हैं की TV पर वास्तविक पात्रों वाले वास्तविक घटनाओं पर सीरियल को बढ़ावा देना चाहिए।
चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी को जोर लगाना चाहिए ताकि बच्चे उपयोगी, रचनात्मक चित्र देख सकें और कुछ बढ़िया मनोरंजन, कुछ व्यावहारिक ज्ञान पा सकें। बच्चों हेतु आविष्कार, कथा, खोज, पहेली, रचना, रहस्य आदि पर व्याहारिक, स्थानीय सीरियल होने चाहिए। बच्चों को स्वार्थ की जगह त्याग की, प्रेम की, सहयोग की भाषा परोसी जानी चाहिए।
जीवन कुमार मित्तल